दोस्तो आज मैं आप को इस ब्लॉग में बताने वाला हु मीरा बाई के बारे में अर्थात आज का हमारा विषय है meera bai biography in hindi। मीरा बाई को नाम सुना सभी ने है लेकीन उनके बारे में सभी बाते नही पता है जिस वजह से गूगल पर प्रतिदिन इस तरह के सर्च होते हैं जैसे कि meera bai story in hindi , about meera bai in hindi इसलिए मैं आज आप को बताऊंगा
तो चलिए शुरू करते है।
मीराबाई जी के बारे में जानकारी | Meera bai biography in hindi | meera bai story in hindi

मीराबाई का जन्म 1498 ईस्वी में हुआ था मेड़ता राजस्थान। मीराबाई एक हिंदू धर्म से थी। वह एक महान कविता और भगवान श्री कृष्ण की परम भक्त थी। उनके सभी भजन भगवान श्री कृष्ण के लिए ही होते थे आज भी उत्तर भारत में मीराबाई के भजन बहुत ही श्रद्धा के साथ भगवान श्री कृष्ण के लिए गाए जाते हैं।
मीराबाई का जन्म राजस्थान के एक राजघराने में हुआ था। मीराबाई एक बहुत ही बहादुर महिला थी जिस वजह से वर्तमान समय में भी हमें कई कविताओं में मीराबाई के बहादुरी की कहानियां मिलती हैं और भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति के बारे में सभी को ज्ञात है।
मीराबाई के पिता का नाम रतन सिंह राठौड़ था जो राजपूत रियासत के शासक थे मेरा भाई अपने माता-पिता की एकलौती संतान थी और मीराबाई के माता का निधन उनके बचपन में ही हो गया था उसके पश्चात मेरा भाई को संगीत धर्म राजनीतिक और प्रशासन जैसे विषयों की शिक्षा दी गई और उनके माता के निधन के बाद मीराबाई का पालन पोषण उनके दादा की देखरेख में हुआ जो स्वयं श्री कृष्ण भगवान के बहुत बड़े उपासक थे और साथ ही वह एक बहुत बड़े योद्धा भी थे उनके घर पर साधु-संतों का आना जाना रहता था।
जिस वजह से मीराबाई का बचपन साधु-संतों और धार्मिक कथा एवं लोगों के संपर्क में भी बीता जिस वजह से वह भी श्री कृष्ण भगवान के उपासक बनी। मीराबाई का विवाह 1516 में मेवाड़ के राजकुमार भोजराज के साथ हुआ भोजराज के पिता का नाम राणा सांगा था।
मीराबाई के पति दिल्ली सल्तनत के शासकों के साथ एक युद्ध के दौरान सन 1518 बी में घायल हो गए और जिस वजह से उनकी तबीयत ठीक नहीं हुई और वह सन 1521 में मर गए। भोजराज के मृत्यु के बाद मीराबाई के पिता तथा ससुर भी मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के युद्ध के दौरान मारे गए।
उस समय ऐसी प्रथा थी कि पति की मृत्यु के साथ पत्नी को भी सती होना पड़ेगा लेकिन Mirabai ने अपने पति के साथ सती होने से इंकार कर दिया। और वह धीरे-धीरे कि संसार से खुद को अलग कर लिया और साधु संत के साथ रहकर वह भजन कीर्तन करते हुए अपना जीवन व्यतीत करने लगी।
मीराबाई के भक्ति दिन-ब-दिन बढ़ती गई और वह अक्सर भगवान श्री कृष्ण के मंदिरों के सामने कृष्ण की मूर्ति के आगे नाचती रहती थी जिस वजह से उनका इस तरह गाना और नाचना उनके परिवार वालों को अच्छा नहीं लग रहा था और इसलिए उनका परिवार उनको कई बार रिश्ते कर मारने की कोशिश भी की।
ऐसा कहा जाता है कि सन 1533 के आसपास में मीराबाई कोराव बीरमदेव ने मेड़ता बुला लिया और जैसे ही मीराबाई ने मेड़ता गए वैसे ही गुजरात के बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर सन 1534 में कब्जा कर लिया और इस युद्ध के दौरान चित्तौड़ के शासक विक्रमादित्य मारे गए थे।
इसके पश्चात 1538 में जोधपुर के शासक ने मेड़ता पर अधिकार कर लिया जिस वजह से वीरमदेव भास्कर अजमेर में सरल लिए और मेरा भाई ब्रज की तीर्थ यात्रा पर निकल गई उसके पश्चात मीराबाई ने सन 1539 में रूप गोस्वामी से मिली और वहां पर कुछ सालों तक रहे उसके पश्चात व द्वारिका के लिए निकल गई।
मीराबाई ने चार ग्रंथों की रचना की थी जिनका नाम बरसी का मायरा गीत गोविंद टीका राग गोविंद राग सोरठ के पद थे। मीरा बाई के कहने पर राज महल में श्री कृष्ण का मंदिर बना तब जा कर मीरा बाई के लिए वह महल आनंद का महल बना। घर में मंदिर बन जाने की वजह से महल में साधु संतों का आना जाना लगा रहता था और मेरा भाई श्री कृष्ण की मूर्ति के सामने नाचती गाती रहती थी जिस वजह से उनके देवर राणाविक्रमजीत कोयह सब बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रहा था । मीराबाई को उधा जी भी समझाते थे लेकिन मेरा भाई दुनिया को भूलकर भगवान श्री कृष्ण ने रंगती गई और जोगिया रंग धारण कर लेती थी जिस वजह से उनके पति की मृत्यु के बाद सिंहासन पर बैठने वाले विक्रमजीत सिंह को मीराबाई का साधु संतों के साथ उठना बैठना बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रहा था जिस वजह से मीराबाई को मारने के लिए दो प्रयास किए गए।
एक बार राणा विक्रम सिंह ने मीराबाई को मारने के लिए फूल की कटोरी में विषैला सर पर रख कर भेजा लेकिन जब वह कटोरी मेरा भाई के सामने खोली गई तो उसमें से भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति निकली आज दूसरी बार उनको विश देकर मारने की कोशिश की गई लेकिन पूरा विष पीने के बावजूद भी मीरा बाई को कुछ भी हानि नहीं हुई।
एक ऐसी कथा प्रचलित है की मीराबाई वृंदावन के एक भक्त शिरोमणि जी गोस्वामी के दर्शन के लिए गए लेकिन गोस्वामी जी एक सच्चे साधु थे जिस वजह से वह स्त्रियों को देखना भी अनुचित समझते थे और उन्होंने अंदर से ही कहलाया कि हम स्त्रियों से नहीं मिलते जिसका उत्तर मीराबाई ने बहुत ही विनम्रता से दिया उन्होंने कहा कि वृंदावन में श्री कृष्ण जी एक पुरुष है लेकिन यहां पर आकर जाना कि उनका एक और प्रतिद्वंदी पैदा हो गया है यह सुनकर जीव गोस्वामी जी नंगे पैर बाहर निकले और बहुत ही प्रेम से उनसे मिले।
मीरा बाई कई दिनों तक वृंदावन में रहेगी उसके पश्चात वह द्वारका के लिए चली गई जहां उन्होंने 1560 ईस्वी में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति में समा गई।
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निष्कर्ष
दोस्तों हमने आपको ब्लॉग में बताया meera bai biography in hindi। अगर आपको इनके बारे में जानकर अच्छा लगा हो तो आप हमें कमेंट कर सकते हैं और यदि आपका कोई सवाल है तो बेझिझक आप हमसे पूछ सकते हैं हम आपके सवाल का जवाब अवश्य देंगे।